साहित्य-संसार

Saturday, March 25, 2006

लोग मिलते गए काफ़िला बढ़ता गया

अनदेखे ठिकाने के लिए
डेरा उसालकर जाने से पहले
समेटना है कुछ गुनगुनाते झूमते गाते
आदिवासी पेड़
पेड़ की समुद्री छाँव
छाँव में सुस्ताते
कुछ अपने जैसे ही लोग
लोगों की उजली आँखें
आँखों में गाढ़ी नींद
नींद में मीठे सपने
सपनों में, सफ़र में
जुड़ते हुए कुछ रोचक लोग


* * * * *

1 Comments:

  • सहजता में गूढता समेटे हुए रचना अच्छी लगी...
    सादर

    By Blogger Vindu babu, at 3:38 PM  

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