रहस्य
जैसा था जितना था
जीया मुकम्मल
कल के गणित में खपाया नहीं सिर
गुम्बदों मीनारों की ओर
निहारने की कोशिश भी नहीं
सीना तानकर झेला सारे प्रश्नों के तीर
चमकता रहा उसकी देह का खारापन
दिन भर
महका जितना महक सकता है
एक साबुत फूल दिन भर
गाया उतने ही अंतरे
जितना आम पकने के मौसम में कोयल
रहस्य
मनमाफ़िक नींद का
नींद में शीतल सपनों का
और कुछ भी नहीं था
******
जीया मुकम्मल
कल के गणित में खपाया नहीं सिर
गुम्बदों मीनारों की ओर
निहारने की कोशिश भी नहीं
सीना तानकर झेला सारे प्रश्नों के तीर
चमकता रहा उसकी देह का खारापन
दिन भर
महका जितना महक सकता है
एक साबुत फूल दिन भर
गाया उतने ही अंतरे
जितना आम पकने के मौसम में कोयल
रहस्य
मनमाफ़िक नींद का
नींद में शीतल सपनों का
और कुछ भी नहीं था
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1 Comments:
'Jesaa thaa jitnaa thaa
jiyaa mukammal' sundar, Manas ji! Sundar.
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Unknown, at 1:11 PM
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