साहित्य-संसार

Monday, March 27, 2006

सुघड़ता

सिर्फ़
नशीले फूलों
कड़वे फलों
ज़हरीली पत्तियों
धोखेबाज टहनियों को
काट-छाँट कर नहीं रह सकते निरापद
पैठो ज़रा और भीतर
सुघड़ता के लिए
विचारों की जड़
गहरी धँसी रहती है
मस्तिष्क की कन्हारी मिट्टी में

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