साहित्य-संसार

Monday, March 27, 2006

सफ़र में

पाँव धरते ही गिर सकते हैं
सूखती हुई नदी के टूटते कगार से
काई जमी चट्टान है अतीत
दूर बहु दूर है
दूसरे तट पर भविष्य
सबसे आसान है पहुँचने के लिए
वहाँ तक
चट्टानों को रगड़ती तेज़ धार में
धीरे-धीरे कद़म रखना
तिरछा
ति

छा


******

0 Comments:

Post a Comment

<< Home