वापसी
पाँव में छाले घूमकर पथरीले रास्ते
गुम हो गयी इन घाटियों में कि सामने पहाड़
स्मृतियों के कोहरों में झाँक-झाँक जाते
पिछले ज़हरीले दिनों के कोलाज
कि युद्ध में लोहूलुहान घायल कोई अचेत सैनिक
उठ खड़ा क्षीण-छायावत
आज वे सभी थके हारे
लौटने के लिए इकट्ठे हैं इन वीरान घाटियों में
अपनी छोटी-सी दुनिया में लौट जाने के लिए
समूची दुनिया ग़ायब होने से पहले
बचा लेने के लिए
अब उनके पास कुछ भी शेष न रहने के बाद भी
एक चीज़ है और वह है लबालब
लौटने की मुस्कान, चमक आँखों में
कि सामने को ख़तरनाक पहाड़ भी सिजदे करे
इस ख़ुशी में बन्दगी में
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1 Comments:
bahut hi adbhut aagaz hai is achoote ahsaaon bhari kavita ka
पाँव में छाले घूमकर पथरीले रास्ते
गुम हो गयी इन घाटियों में कि सामने पहाड़
स्मृतियों के कोहरों में झाँक-झाँक जाते
waah!!
Devi nangrani
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Devi Nangrani, at 9:15 PM
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